राजस्थान में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले है जिसे लेकर प्रदेश की सियासत में एक बड़ा उलटफेर देखने को मिल रहा है. प्रदेश की राजनीति के लिहाज से सितंबर का महीना बेहद ही खास है. इस महीने की शुरुआत में ही राजस्थान में बीजेपी और कांग्रेस को चुनावी मैदान में टक्कर देने के लिए एक और बड़ी पार्टी यानी शिवसेना की एंट्री हुई.
एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र से बाहर अन्य राज्यों में भी अपनी पार्टी का विस्तार करने की कोशिश कर रहे हैं. वहीं राजस्थान में शिवसेना की एंट्री के साथ ही गहलोत सरकार से बर्खास्त मंत्री राजेंद्र सिंह गुढ़ा ने पार्टी का दामन थाम लिया. लाल डायरी दिखाकर रातों रात सियासत के फलक पर चर्चा में आने वाले पूर्व मंत्री राजेंद्र गुढ़ा को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने झुंझुनूं में पार्टी की सदस्यता दिलाई और उन्हें एकनाथ शिंदे की शिवसेना में कोऑर्डिनेटर पद की जिम्मेदारी दी गई.
कभी अशोक गहलोत के करीबी रहे गुढ़ा ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाने में अहम भूमिका निभाई थी. गुढ़ा ने हाल ही में दावा भी किया था कि अगर मेरा आशीर्वाद नहीं होता तो गहलोत कभी मुख्यमंत्री नहीं बनते. 24 जुलाई को विधानसभा में लाल डायरी दिखाने के आरोप में गुढ़ा को बर्खास्त कर विधानसभा से निष्कासित कर दिया गया था.
ऐसे में इस स्टोरी में जानते हैं कि आखिर शिवसेना (एकनाथ शिंदे) क्यों राजस्थान में विधानसभा चुनाव लड़ने का मन बना रही है और अब उनकी पार्टी की एंट्री से राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव पर क्या असर पड़ेगा और शिवसेना की क्या भूमिका होगी?
आखिर क्यों राजस्थान में विधानसभा चुनाव लड़ने का मन बना रही है शिवसेना?
19 जून 1966 में शिवसेना की स्थापना हुई थी उस वक्त पार्टी ने मराठी मानुष के हक की आवाज उठाई थी. उस दौर में महाराष्ट्र में मराठों की जनसंख्या करीब 43 फीसदी थी लेकिन फिल्म इंडस्ट्री से लेकर, कारोबार और नौकरियों में उनकी तादाद सबसे कम थी. गुजरातियों की आबादी 14 फीसदी होने के बावजूद कारोबार में वे सबसे ज्यादा थे. छोटे व्यवसायों में नौ फीसदी आबादी वाले दक्षिण भारतीय छाए हुए थे. बाला साहेब का कहना था कि दक्षिण भारतीय मराठियों की नौकरी पा रहे हैं. वह मराठियों को काम पर रखे जाने की मुहिम चलाने लगे.
लेकिन धीरे धीरे शिवसेना ने मराठी मानुष की अस्मिता के साथ-साथ अपनी छवि कट्टर हिंदूवादी की बनानी शुरू कर दी और कई बार चुनाव हारने के बाद साल 1989 में हुए लोकसभा चुनाव से पहली बार शिवसेना भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ी और उसके चार उम्मीदवार जीतकर संसद पहुंचे. जिस दौर में शिवसेना हिंदुत्व की बात कर रहे थे उस वक्त यह मुद्दा चरम पर था तो पार्टी को लगा उनकी छवि का शिवसेना का फायदा होगा.
लेकिन पार्टी का ये दाव उलटा पड़ गया और शिवसेना महाराष्ट्र तक सीमित रह गई. महाराष्ट्र के बाहर शिवसेना के लिए एक भी सीट जीतना काफी मुश्किल रहा है. यूपी में पार्टी ने साल 1991 में एक सीट जीती थी वो भी एमएलए की. इसके अलावा साल 2021 में शिवसेना को पहली बार महाराष्ट्र के बाहर से यानी दादर और नागर हवेली से एक सांसद मिला था.
अब एकनाथ शिंदे पार्टी की इसी परंपरा को तोड़ने के लिए अन्य राज्यों में भी अपनी पैठ बनाना चाहते है. यही कारण है कि पार्टी ने राजस्थान से अपने विस्तार की शुरुआत कर दी है.
शिवसेना के विस्तार पर पार्टी ने क्या कहा
शिवसेना के प्रवक्ता शीतल म्हात्रे ने हाल ही में अपने एक बयान में कहा, ‘हम महाराष्ट्र के बाहर अपनी पार्टी का विस्तार करने की कोशिश कर रहे हैं और हमने राजस्थान से अभियान शुरू किया है और राज्य में अपनी उपस्थिति दर्ज कराना भी शुरू कर दिया है. ” उन्होंने आगे कहा कि फिलहाल 10 राज्य इकाई प्रमुख हमारी पार्टी के साथ जुड़ चुकी हैं, और अन्य जो प्रतिद्वंद्वी शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के साथ थे, वे भी संपर्क में हैं. म्हात्रे ने कहा कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री शिंदे ही फैसला करेगी की उनकी पार्टी राजस्थान के चुनाव मैदान में कब और कैसे उतरेगी.
क्या बीजेपी के साथ गठबंधन में आएगी एकनाथ शिंदे की शिवसेना
राजस्थान में एकनाथ शिंदे की शिवसेना की एंट्री के साथ प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में चर्चा होने लगी कि आने वाले लोकसभा चुनाव में शिवसेना बीजेपी के साथ गठबंधन में मैदान में उतर सकती है. हालांकि इस पार्टी की तरफ से वर्तमान में गठबंधन करने को लेकर कोई बयान नहीं दिया गया है.
लेकिन ये कहना गलत नहीं होगा कि प्रदेश की राजनीति में शिवसेना की एंट्री के बाद कई समीकरण बनें है तो कई समीकरण बिगड़ने भी शुरू हो गए है. अगर शिवसेना चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला लेती है तो अनुमान लगाया जा रहा है कि पार्टी कम से कम 5 से 10 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेगी.
प्रेस कॉन्फ्रेंस में शिंदे और गुढ़ा ने क्या कहा
गुढ़ा के शिवसेना में शामिल होने पर आयोजित किए गए प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी एकनाथ शिंदे और गुढ़ा ने राजस्थान में शिवसेना की भूमिका पर कुछ नहीं कहा. हालांकि शिंदे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में ये जरूर कहा कि उनकी पार्टी जनता के लिए काम करती है. अगर पार्टी सत्ता में आती है तो राज्य के विकास पर काम करेगी, युवाओं को नौकरी देने और क्षेत्र में उद्योग, महिलाओं की सुरक्षा, मजबूत कानून-व्यवस्था और किसानों की प्रगति को ध्यान में रखते हुए काम करेगी.
सीएम शिंदे राजेंद्र गुढ़ा पर क्या कहा?
राजेंद्र गुढ़ा के शिवसेना में शामिल होने के बाद एकनाथ शिंदे ने कहा राजेंद्र गुढ़ा राज्य की जनता के लिए आवाज उठा रहे थे. इसमें उनकी गलती थी? उन्होंने कहा कि गुढ़ा ने मंत्री का पद छोड़ दिया, लेकिन सच्चाई नहीं छोड़ी.’
शिंदे ने इसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में राजेंद्र गुढ़ा की तारीफ करते हुए कहा, देश को आप जैसे सच्चे नेता की जरूरत है, जो अपने स्वार्थ को परे रख कर जनता का फायदा देखते हैं.’ उन्होंने कहा कि जैसे आपने मंत्री पद छोड़ दिया था, ठीक इसी तरह एक साल पहले मैंने और मेरे साथ 9 मंत्रियों ने मंत्री पद छोड़ दिया था, ये हमने सच्चाई के लिए और बाला साहेब के विचारों के लिए सत्ता का त्याग किया था.
कांग्रेस से क्यों बर्खास्त हुए थे गुढ़ा
राजस्थान में राजेंद्र गुढ़ा को जमीनी पकड़ वाली नेता माना जाता है. उन्होंने साल 2018 में बसपा के टिकट पर चुनाव जीता था. गुढ़ा उन 6 विधायकों में थे जिन्होंने बहुजन समाजवादी पार्टी के टिकट पर राजस्थान में परचम लहराया था. बाद में उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया और मंत्री बने.
जुलाई 2023 को गुढ़ा ने पंचायती राज और ग्रामीण विकास राज्य मंत्री रहते हुए विधानसभा में राज्य की कानून-व्यवस्था पर अपनी ही सरकार को घेरते हुए ‘लाल डायरी’ लहराने का प्रयास किया था. जिसके बाद उन्हें मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया था.