गुलाम भारत के कई किस्से हैं, जो आज भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। भारत में आजादी से पहले हुए एक बड़े नरसंहार को हर साल 13 अप्रैल को याद किया जाता है। जिसे हम जलियांवाला बाग कांड (Jallianwala Bagh Massacre) के नाम से जानते हैं। इस साल बुधवार 13 अप्रैल 2022 को इस हत्याकांड के 103 साल पूरे होने वाले हैं। इस हत्या कांड के दोषी जनरल डायर (General Dyer) की हत्या भी एक हिंदुस्तानी के हाथों 21 साल बाद हुई थी। जिन्हें सरदार उधम सिंह (Sardar Udham Singh) के नाम से जाता जाता है।
13 अप्रैल 1919 को पंजाब के अमृतसर में स्थित स्वर्ण मंदिर के पास जलियांवाला बाग में अंधाधुंध गोलीबारी में सैकड़ों लोग मारे गए थे। बिना किसी कारण के बैठक में शामिल हुए 350 से अधिक लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हो गए। रॉलेट एक्ट के विरोध में बैठे लोगों पर जनरल डायर के आदेश पर गोलियां चलाई गई थीं।
क्यों हुई थी जलियांवाला बाग में लोगों की हत्या
अमृतसर में जलियांवाला बाग नाम से एक स्थान है, जो स्वर्ण मंदिर से थोड़ी ही दूरी पर है। इसी जगह पर 13 अप्रैल 1919 को अंग्रेजी हुक्कुमत के खिलाफ रॉलेट एक्ट के विरोध में हजारों सिख एकजुट हुए थे। कहा जाता है कि अंग्रेजों की दमनकारी नीति, और सत्यपाल और सैफुद्दीन की गिरफ्तारी के खिलाफ भी लोग इस सभा में एकजुट हुए थे। शहर में कर्फ्यू था और हजारों की संख्या में लोग बैठक में पहुंचे थे।
कौन था जलियांवाला बाग का दोषी
जलियावाला बाग में चल रही सभा में जनरल रेजिनाल्ड डायर पहुंचा और उसने वहां मौजूद सैनिकों को फायरिंग का आदेश भी दिया। बताया जाता है कि इस दौरान 5 हजार लोग वहां मौजूद थे। जबकि जनरल डायर ने अपने 90 ब्रिटिश सैनिकों के साथ इस जगह को घेर लिया था।
ऐसे लिया जलियांवाला बाग के दोषी से सरदार उधम सिंह ने बदला
कहते हैं कि 13 अप्रैल 1919 को हुए इस नरसंहार का बदला लेने के लिए पंजाब का शेर सरदार उधम सिंह लंदन पहुंचा था। कई सालों की योजनाओँ के बाद आखिरकार 13 मार्च 1940 को डायर एक बैठक में भाग लेने के लिए लंदन के कैक्सटन हॉल में मौजूद थे। उसी जगह पर सरदार उधम सिंह भी थे। जिन्होंने एक एक मोटी किताब के पन्नों को रिवॉल्वर छिपा रखी थी। लोगों की भीड़ में मौजूद उधम सिंह ने डायर को स्पीच देते वक्त गोलियां चलानी शुरू कर दीं। इसके बाद कोर्ट में केस चला और सरदार उधम सिंह को फांसी की सजा हुई और 1974 में उनका शव भारत पहुंचा।
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